"जब तक मान्यताओं की माया का भेद स्पष्ट न हो, तब तक चित्त का साक्षात्कार कैसे संभव है? और यदि चित्त का साक्षात्कार नहीं हुआ, तो आत्मा और आनंद का अनुभव कैसे किया जा सकता है? आनंद की प्राप्ति का सही मार्ग क्या है?"
* माया:- यह संसार, इसके मोह और माया है।
* दर्शन:- परमात्मा का साक्षात्कार या अनुभव।
* चित्त:- मन
* आनंद:- परम सुख, शांति
आप कह रहे हैं कि: जब तक हम इस संसार की माया से मुक्त नहीं होते, तब तक हम परमात्मा का साक्षात्कार नहीं कर सकते। और अगर हम परमात्मा का साक्षात्कार नहीं कर सकते, तो हम आनंद का अनुभव कैसे कर सकते हैं?
यह एक बहुत ही सटीक प्रश्न है।
आइए इस पर गौर करें:
* माया का बंधन:- हम सभी इस संसार की माया में फंसे हुए हैं। हमारी इंद्रियां हमें इस संसार की सुख-दुख, लाभ-हानि से जोड़ती हैं। हम इन सब चीजों में इतने लिप्त हो जाते हैं कि हमें परमात्मा को भूल जाते हैं।
* चित्त की अशांति:- जब हमारा मन इन संसारिक चीजों में लगा रहता है, तो वह अशांत रहता है। इस अशांति के कारण हम आनंद का अनुभव नहीं कर पाते।
* परमात्मा का साक्षात्कार:- परमात्मा का साक्षात्कार तभी संभव है जब हमारा मन शांत हो जाए और हम इस संसार की माया से मुक्त हो जाएं।
* आनंद का स्रोत:- आनंद का स्रोत परमात्मा ही है। जब हम परमात्मा से जुड़ जाते हैं, तो हमें असीम आनंद का अनुभव होता है।
अब सवाल यह उठता है कि आनंद कैसे प्राप्त किया जाए?
* ध्यान और साधना:- ध्यान और साधना के माध्यम से हम अपने मन को शांत कर सकते हैं और परमात्मा से जुड़ सकते हैं।
* सत्संग:- सत्संग के माध्यम से हम ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं और अपने जीवन में बदलाव ला सकते हैं।
* सेवा:- सेवा करने से हमारा मन दूसरों की भलाई में लगता है और हम अपने स्वार्थ से ऊपर उठ पाते हैं।
याद रखें:
* परमात्मा का साक्षात्कार एक लंबी और कठिन यात्रा है।
* इस यात्रा में हमें धैर्य और लगन से काम लेना होगा।
* हमें कभी हार नहीं माननी चाहिए।
अंत में:- इस प्रश्न का उत्तर ढूंढने के लिए आपको स्वयं प्रयास करना होगा। आप विभिन्न धर्मों, दर्शनों और आध्यात्मिक ग्रंथों का अध्ययन कर सकते हैं। आप योग, ध्यान और साधना का अभ्यास कर सकते हैं। आप सत्संग में जा सकते हैं। आप सेवा कर सकते हैं।
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